सहभागिता की मूल भावना से शुरू हुआ सहकार आन्दोलन वर्तमान में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में संबल प्रदान कर रहा है। हिमाचल प्रदेश में सहकारिता का एक लम्बा इतिहास रहा है। शुरूआती दौर में सहकारी समितियां मुख्यतः कृषि, ऋण, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति तक सीमित थी, लेकिन प्रदेश सरकार के दक्ष प्रयासों से इनका विस्तार डेयरी, बागवानी, विपणन, हस्तशिल्प और अन्य अनेक क्षेत्रों में हुआ है। प्रदेश में सहकारिता की सफलता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां के लगभग 20 लाख लोग सहकारिता से जुड़े हुए हैं। राज्य में सतत सहकारी विकास मॉडल को अपनाया गया है। प्रदेश की सहकारी समितियां देश के समक्ष अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रही हैं।
वर्तमान में प्रदेश में पांच हजार से अधिक सहकारी समितियां पंजीकृत हैं। 2,287 प्राथमिक कृषि ऋण समितियां ग्रामीण वित्तीय समावेशन का कार्य कर रही हैं। इस दिशा में 6 नई बहुउद्देशीय समितियां भी गठित की गई हैं।
प्रदेश में 76 समितियां मत्स्य पालन समुदाय, 971 डेयरी समितियां दूध उत्पादन एवं वितरण, 441 समितियां बचत एवं ऋण सुविधा और 386 प्राथमिक विपणन सहकारी समितियां किसानों को अपनी उपज बेचने में मदद कर रही हैं।
मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू के दूरदर्शी नेतृत्व में सहकारी समितियों के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश सहकारी नीति का उद्देश्य प्रदेश को आत्मनिर्भर राज्य के रूप में स्थापित करना है। प्रदेश में सहकारिता के लिए मजबूत और सतत् सहकारी प्रणाली का विकास किया जा रहा है। प्रदेश में सहकारिता में संस्थागत सुधार अवधारणा समावेशन, नवाचार और युवा भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है।
 हिमाचल में डेयरी क्षेत्र में सहकारी समितियां सफलता की नई इबारत लिख रही हैं। प्रदेश में 971 दुग्ध सहकारी समितियों में 35,720 महिलाएं सक्रिय हैं। इस क्षेत्र में 561 नई समितियां गठित की गई हैं। हिमाचल, देश का पहला राज्य है जिसने दूध पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया है। प्रदेश में लगभग 38 हजार 400 किसानों से रोज़ाना औसतन 2 लाख 33 हजार लीटर गाय का दूध खरीदा जा रहा है। भैंस पालकों से 61 रुपये प्रति लीटर की दर से दूध खरीदा जा रहा है।
सरकार की महत्त्वाकांक्षी हिम गंगा योजना के प्रथम चरण में हमीरपुर और कांगड़ा जिला में उल्लेखनीय कार्य किए जा रहे हैं। इस योजना का उद्देश्य दूध खरीद, प्रसंस्करण और विपणन में गुणात्मक सुधार करना है। इसके अतिरिक्त योजना के तहत नई दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों का गठन, दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापना और मौजूदा संयंत्रों का उन्नयन भी किया जाएगा।
प्रदेश में मिल्डफेड के संचालन के लिए कांगड़ा, मंडी, नाहन, शिमला और नालागढ़ पांच इकाइयों में विभाजित किया गया है। मिल्कफेड दूध खरीद प्रसंस्करण और विपणन की दिशा में सुधार के दृष्टिगत कार्य कर रहा है।
प्रदेश की महिलाएं सहकारिता के बल पर वैश्विक मंच पर अपनी पहचान कायम कर रही हैं। ऊना में पांच हजार महिलाओं ने स्वयं वूमेन फेडरेशन बनाई है। महिला स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों को बड़ा बाजार उपलब्ध करवाने में हिम ईरा ब्रांड उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा है। महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने के लिए उन्हें फूड वैन भी उपलब्ध करवाई जाती हैं, जिसका संचालन महिलाओं द्वारा ही किया जाता है।
हिमाचल की संस्कृति को प्रदर्शित करते उत्पादों को बड़ा बाजार उपलब्ध करवाने के लिए ई-कामर्स बैवसाइट  himira.co.in     शुरू की गई है। इससे प्रदेश के बुनकरों, कारीगरों और उद्यमियों के उत्पादों को विस्तार मिल रहा है और ऑनलाइन बिक्री के माध्यम से उनकी आर्थिकी भी सुदृढ़ हो रही है।
सहकारिता ने ग्रामीण स्वरोजगार को प्रोत्साहन, युवाओं को स्थानीय स्तर पर अवसर और प्रदेश की आत्मनिर्भरता की दिशा में अहम योगदान दिया है। हिमाचल प्रदेश में सहकारिता आन्दोलन का विकास न केवल आर्थिक सशक्तिकरण का माध्यम बना है बल्कि यह सामाजिक समरसता और साझेदारी का प्रतीक भी है।
हिमाचल में सहकारी समितियां सशक्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार हैं। प्रदेश सरकार इन समितियों को सशक्त बनाकर आत्मनिर्भर हिमाचल की संकल्पना को साकार करने के लिए निरंतर प्रयासरत है।

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