व्यवस्था पतन में सब कुछ कार्यवाहकों के भरोसे चल रहा

पुराने अधिकारियों से पिंड न छुड़ा पाने के पीछे मुख्यमंत्री की क्या मजबूरी

नए अधिकारी प्रदेश पर भार तो रिटायर्ड अधिकारी क्यों ढो रही सरकार

शिमला : शिमला से जारी बयान में नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि व्यवस्था पतन की सरकार में सब कुछ भगवान भरोसे चल रहा है। कार्यवाहकों के भरोसे ही सरकार व्यवस्था को चलाना चाहती है और उसका खामियाजा प्रदेश के लोग भुगत रहे हैं। प्रदेश में स्थाई डीजीपी नहीं है। अस्थाई यानी कार्यवाहक डीजीपी के भरोसे सरकार काम चल रही है। इसी तरीके से प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी का मुखिया भी सरकार नहीं चुन पाई और कार्यवाहक के भरोसे ही प्रदेश चलाने की योजना बना रही है। फॉरेस्ट का हॉफ भी कार्यवाहक है। आबकारी और कराधान का निदेशक भी कार्यवाहक है। हिमाचल प्रदेश इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमिशन भी कार्यवाहक की भरोसे चल रहा है। प्रदेश के प्रमुख कांगड़ा कोऑपरेटिव बैंक का अध्यक्ष भीकार्यवाहक है। यह एक अंतहीन श्रृंखला है। प्रदेश में ज्यादातर जगहों पर सरकार अपनी सुविधा के अधिकारियों को कार्यवाहक के रूप में तैनात करके प्रदेश चलना चाह रही है। मंत्री अधिकारियों के चंगुल में फंस चुके हैं और उनसे अपना पीछा नहीं छुड़ा पा रहे हैं। व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर व्यवस्था पतन की राह पर जा रही सरकार के लिए स्थाई तौर पर अधिकारियों की नियुक्ति भी संभव नहीं है? सेवानिवृत अधिकारियों को भी उच्च से उच्च रैंक दिए जा रहे हैं। क्या इसका आर्थिक भार प्रदेश पर नहीं आएगा? क्या प्रदेश के लोगों को सरकार की फैसले की कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी?

जयराम ठाकुर ने कहा कि मुख्यमंत्री एक तरफ कहते हैं कि वह अब केंद्र से आईएएस, आईपीएस और आईएफएस  के नए अधिकारियों को हिमाचल प्रदेश में नहीं लेंगे। इसी वर्ष उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा पूछे जाने पर लिख कर दिया था कि उन्हें नए अधिकारी नहीं चाहिए। इसके पीछे सरकार और उनकी मित्र मंडली ने इसे प्रदेश के आर्थिक खर्चों की कटौती में मास्टर स्ट्रोक की तरह प्रचारित किया गया था। सरकार द्वारा इस बेतुके फैसले को बहुत बड़े सुधार की तरह बताया गया। इस व्यवस्था परिवर्तन और ऐतिहासिक न जाने क्या-क्या नाम दिए गए। लेकिन सरकार की यह नौटंकी बहुत कम समय में ही बेनकाब हो गई जब सरकार की सुविधा के अनुरूप काम करने वाले कई अधिकारियों को सुक्खू सरकार ने दो-दो साल का एक्सटेंशन या पुनर्नियुक्ति दे दी। उसमें से कुछ अधिकारी तो बाद में इतने दागी पाए गए माननीय उच्च न्यायालय को आदेश देना पड़ा की उनसे किसी भी प्रकार के जिम्मेदारी पूर्ण कार्य न करवाए जाएं। बाकी के कई अधिकारियों का आचरण कैसा है वह प्रदेश के लोग देख और समझ रहे हैं। इस सरकार में संदिग्ध आचरण वाले से अधिकारियों का

बोलबाला है। या यूं कहे उनकी तूती बोलती है। कई विधायक और कुछ मंत्री भी उनसे त्रस्त हैं। वह क्यों हैं? यह बात प्रदेश के लोग जानना चाहते हैं। यदि नए अधिकारी प्रदेश की आर्थिकी पर भार हैं तो रिटायर्ड अधिकारियों को सरकार क्यों ढोरही है मुख्यमंत्री को यह भी प्रदेशवासियों को बताना चाहिए।

जयराम ठाकुर ने कहा कि यह सिलसिला यहीं नहीं रुका इसके बाद प्रदेश के आलाधिकारियों के सेवा विस्तार में सरकार ने खूब नूरा कुश्ती की। प्रदेश के युवाओं को गारंटी देकर भी ठूँजा वाली नौकरी तो नहीं दे पाए। लेकिन अधिकारियों को 63.5 साल की नौकरी दी जा रही है। एक तरफ सरकार नए अधिकारियों को हिमाचल में लेने पर प्रदेश पर आर्थिक बोझ आने का हवाला देती है लेकिन दूसरी तरफ हाईएस्ट रैंक और ग्रेड पे के अधिकारियों का सेवा विस्तार करती है या फिर उन्हें अन्य प्रकार से एडजस्ट करने की कोशिश करती है। एक तरफ सरकार नए आईएएस अधिकारियों से मुंह फेरती है तो दूसरी तरफ पुराने आईएएस अधिकारियों से अपना पिंड भी नहीं छुड़ा पाती है। कुछ अधिकारी तो ऐसे भी हैं जो पहले मुख्यमंत्री को बहुत दागी लगते थे अब वही सर्वेसर्वा हैं। प्रदेश के लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर मुख्यमंत्री की ऐसी क्या मजबूरी है जो मुख्यमंत्री उनसे अपना पीछा नहीं छुड़वा पा रहे हैं। हमने तो मुख्यमंत्री को पहले ही आगाह किया था कि जिस रास्ते पर वह चल रहे हैं और अधिकारी जिस रास्ते पर उन्हें ले जा रहे हैं वहां से लौटना उनके लिए बहुत मुश्किल होगा। हमारी बात सच साबित हो रही है।

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