पांगी घाटी में एचआरटीसी बसों की भारी किल्लत, भेड़-बकरियों की तरह सफर कर रहे लोग।

हालात इतने बदतर हैं कि किलाड़ से करयूनी जैसे सिर्फ 15 किलोमीटर के छोटे से रूट पर भी परिवहन निगम दूसरी बस का इंतजाम नहीं कर पा रहा है। जो इक्का-दुक्का बसें चल भी रही हैं, उनकी हालत कबाड़ खाने जैसी हो गई है। ये खटारा बसें कब किस खतरनाक मोड़ पर दम तोड़ दें, इसका कोई भरोसा नहीं।

किलाड़-करयूनी रूट पर बस नहीं, कबाड़ हो चुकी गाड़ियां दौड़ रहीं सड़कों पर।

सरकार ने वाहवाही लूटने के लिए 40 प्रतिशत सब्सिडी के साथ प्राइवेट बस परमिट जारी करने का ऐलान तो कर दिया, लेकिन यह योजना धरातल पर औंधे मुंह गिर पड़ी। सच्चाई यह है कि पांगी की सड़कें ‘मौत का कुआं’ बनी हुई हैं। ऐसे में कौन अपनी प्राइवेट गाड़ी को इन खतरनाक रास्तों पर उतारकर नुकसान झेलना चाहेगा? यही वजह है कि सरकार की यह योजना पूरी तरह से हवाई साबित हुई है 

स्थानीय लोगों का दर्द अब गुस्से में बदल रहा है। उनका कहना है कि एक दौर था जब स्वर्गीय राजा वीरभद्र सिंह पांगी को अपना दूसरा घर मानते थे और उन्होंने ही यहां सड़कें पहुंचाई थीं। लेकिन उनके जाने के बाद चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, सबने पांगी को अनाथ छोड़ दिया है। लोगों का आरोप है कि आजकल के नेता और मंत्री पांगी को सिर्फ एक picnic spot समझते हैं। वे जून-जुलाई में ठंडी हवा खाने आते हैं, लेकिन जनता की मुसीबतों से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता।

किलाड़-करयूनी रूट की तस्वीरें गवाह हैं कि एचआरटीसी प्रबंधन सिर्फ जुगाड़ के सहारे चल रहा है। डिपो के पास न तो पर्याप्त बसें हैं और जो हैं वो भी राम भरोसे हैं। हर दिन हजारों लोग मौत के साये में सफर कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन कुंभकर्णी नींद सोया है। बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रही है? पांगी की जनता अब बस यही पूछ रही है कि आखिर कब तक उन्हें इस सौतेले व्यवहार का शिकार होना पड़ेगा।

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